Sunday, July 19, 2009

मुझ पर जितने वार करोगे, मैं मरकर हर बार लिखूंगा.

रचयिता को विषयों का आभाव तो चिर काल से रहा है. और जिस गति से हम विषयों को खा रहे हैं, लाजमी हैं की कवि विद्रोही हो जाये. अरे तुमने उसकी नदी को मार दिया, उसके फूलों से हंसी छीन कर उन्हें एक भूखा पापी पेट दे दिया, और भूख मिटने को दे दीं लोहे की खून से सनी गोलियां. उसकी ज़मीन पर तो कहीं रेखा नहीं खिँची थी....तो मजबूरी में उसे ये लिखना पड़ रहा है.. आनंद लें पर सिर्फ आनंद न लें...खैर बड़े दिनों बाद कुछ निकला है क्या कहते हैं अंग्रेजी में उसे straight from the heart. इस पर मुझे प्रतिक्रियाओं का लालच अवश्य है...तो इंतज़ार रहेगा प्रतिक्रियाओं का.....


अगर यूँ ही कुछ लिखने को न मिला तो क्या ये कलम दम तोड़ देगी,
मैं शायर हूँ, कहीं-कहीं से, कुछ ढूंढ-ढूंढ कर लाऊँगा,
चिलमन कोई जला दूंगा, बीडी कोई बुझाऊँगा,

कुछ सिमटी रातें तह करके, रख दूंगा अलमारी में
सारी बारिश सुखा-सुखा कर, सागर तुझे डुबा दूंगा.

बंद करूंगा सूरज तुझको सात कड़ी के तालों में,
चाँद तुम्हारे रेशे ले कर खद्दर नयी बनाऊंगा.

प्रेम लिखूंगा वार लिखूंगा, अर्दप अत्याचार लिखूंगा,
फूलों से खुशबू ले लूँगा, काँटों पर बलिहार लिखूंगा.

खंडहरों में जमा के महफिल, शीश महल-यलगार लिखूंगा.
लैला से शोखी ले लूँगा, मजनू को व्यापार लिखूंगा.

चारू-चन्द्र की तिरपन किरणे, छीन भरूँगा डिबिया में.
सरहद को बंदी कर दूंगा, फिर उस पर उस पार लिखूंगा.

घर चौबारे एक करूंगा, को सूरज मद्धम कर दूंगा,
जहाँ-जहाँ पर भीड़ लगेगी, सबको निर्जन थार लिखूंगा.

तरुवर को फलहीन करूंगा, सरवर होंगे रक्त-पिपासु,
दो तलवारें एक म्यान में, एक नहीं सौ बार लिखूंगा.

एक अकेली मछली, सब तालाबों को साफ करेगी,
निरीह चने को साथ बिठाकर, फूटे सारे भाड़ लिखूंगा.

राजा के जालिम प्रहरी को, जीवन-मित्र बना दूंगा,
ओ लटके फाँसी के फंदे, तुझको विजयी हार लिखूंगा.

मृत्यु को जीवन गीत बताकर, घुल कर हवा में बह जाऊँगा,
मुझ पर जितने वार करोगे, मैं मरकर हर बार लिखूंगा.

..........................................................सुप्रेम त्रिवेदी "आबाद" उर्फ़ "बर्बाद"

7 comments:

Unknown said...

Jai ho, jai ho wah wah wah wah

Unknown said...

Really good one Suprem! Keep it up buddy.

Ankur Chandra said...

bahut badhiya hai guru..

travel30 said...

nice words

मृत्यु को जीवन गीत बताकर, घुल कर हवा में बह जाऊँगा,
मुझ पर जितने वार करोगे, मैं मरकर हर बार लिखूंगा.

b'ful poem mr trivedi

Ramesh Nair said...

dada dil per seedhe chappal mar diye ho lakhani wali..!! Itna gussa kiss per..??

Shobhit Verma said...

Bahut acche !

Himanshu said...

Achha hai kaafi...