Monday, March 10, 2008

रातों में बिखराव बहुत है, सब सपने फट जाते हैं

सन्नाटों में शोर बहुत है, आवाज़ों में खालीपन,
धूप जमा देती है ठन्डी, पर सूखी बरसातें हैं।

चन्दा मामा आज न आना, बड़ी रौशनी फैलाते हो,
तुम रोज़ चाँदनी करते हो, हम फिर से जल जाते हैं।

कुत्तों के बिस्कुट बिकते हैं, तुम लाइन लगा-लगा लेते हो,
पर रोटी फिर रह जाती है, हम फिर भूखे सो जाते हैं।

इन्सानों में हिम्मत कम है, सोने में चमकार बहुत,
फिर तुमने इक दाम लगाया, फिर हम बिकने जाते हैं।

ख्वाबों से जो प्यार हैं करते, वो दिन में सो लेते हैं,
रातों में बिखराव बहुत है, सब सपने फट जाते हैं।