Wednesday, November 29, 2006

नुमाइश

कल इन्सानों की नुमाइश होगी, जज़्बातों का बाज़ार सजेगा,
अपने-अपने बरतन लाना, लहू वहाँ इफ़रात मिलेगा ।

जान मिलेगी, आन मिलेगी, अरमानों का हाट सजेगा,
अपने-अपने कपड़े लाना, जिस्म वहाँ इफ़रात मिलेगा ।

बोली देना दाम मिलेंगे, अकबर होगा राम मिलेंगे,
अपने-अपने मज़हब लाना, ख़रीदार इफ़रात मिलेगा ।

हवा भी लाना साँस मिलेगी, पानी लाना प्यास मिलेगी,
अपनी-अपनी लाशें लाना, चिता वहाँ इफ़रात मिलेगी ।

इज़्ज़त लाना अस्मत लाना, उजियारे का हाट सजेगा,
अपने-अपने विषधर लाना, ज़हर वहाँ इफ़रात मिलेगा ।

भूखें लाना, ग़ुरबत लाना, जंगों का बाज़ार सजेगा,
अपनी-अपनी सरहद लाना, मुल्क़ वहाँ इफ़रात मिलेगा ।

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